कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाथ मामला: पुलिस की बर्बरता और न्याय की लड़ाई

13-14 मार्च, 2025 की रात पंजाब के पटियाला में एक पार्किंग विवाद के बाद पुलिसकर्मियों द्वारा कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाथ और उनके बेटे पर कथित तौर पर किए गए बर्बर हमले ने पूरे देश में आक्रोश पैदा कर दिया है। यह घटना न केवल एक सेवारत सेना अधिकारी और उनके परिवार की सुरक्षा पर सवाल खड़े करती है, बल्कि पंजाब पुलिस की जवाबदेही और कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल उठाती है। कर्नल बाथ ने न्याय की गुहार लगाते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और मामले की जांच सीबीआई या किसी स्वतंत्र एजेंसी को सौंपने की मांग की है।

घटना का विस्तृत विवरण

कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाथ भारतीय सेना में एक वरिष्ठ अधिकारी हैं और वर्तमान में कैबिनेट सचिवालय में एक संवेदनशील पद पर तैनात हैं। उनके अनुसार, 13-14 मार्च की मध्यरात्रि को पटियाला में एक ढाबे के बाहर कुछ पुलिसकर्मियों ने उनसे उनकी गाड़ी हटाने को कहा ताकि वे अपनी गाड़ी पार्क कर सकें। जब कर्नल बाथ ने उनके रुख पर आपत्ति जताई, तो पुलिसकर्मियों ने उन पर और उनके बेटे पर बेरहमी से हमला कर दिया।

आरोप है कि हमलावरों में चार इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी और उनके सशस्त्र सहयोगी शामिल थे। उन्होंने कर्नल बाथ का आईडी कार्ड और मोबाइल ज़ब्त कर लिया और उन्हें “फर्जी मुठभेड़” में मारने की धमकी दी। यह सब सार्वजनिक रूप से और सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में हुआ। इस हमले में कर्नल बाथ के हाथ में फ्रैक्चर आया, जबकि उनके बेटे को सिर में गंभीर चोटें आईं।

पुलिस की निष्क्रियता और देरी से एफआईआर दर्ज करना

कर्नल बाथ ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि घटना के तुरंत बाद पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। वरिष्ठ अधिकारियों को की गई डिस्ट्रेस कॉल्स को नजरअंदाज कर दिया गया। उनके बयान के बजाय, एक तीसरे व्यक्ति की शिकायत पर “अफरा-तफरी” का एक झूठा केस दर्ज किया गया। कर्नल बाथ के परिवार को पंजाब के राज्यपाल और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क करने के बाद ही आठ दिन बाद सही एफआईआर दर्ज हो पाई।

हाईकोर्ट का सख्त रुख

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इस मामले में त्वरित संज्ञान लेते हुए पंजाब सरकार को 28 मार्च तक विस्तृत जवाब देने का आदेश दिया है। जस्टिस संदीप मौदगिल की बेंच ने एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी पर कड़ी नाराजगी जताई और पूछा कि किस अधिकारी ने शुरू में कार्रवाई करने से इनकार किया और क्यों?

कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह की बर्बरता बर्दाश्त नहीं की जा सकती और सवाल किया कि क्या इस मामले की जांच सीबीआई को नहीं सौंपी जानी चाहिए? हाईकोर्ट ने पुलिस की प्रारंभिक जांच पर भी सवाल उठाए, जिसमें ढाबा मालिक के बयान के आधार पर केस दर्ज किया गया था। कोर्ट ने इसे पुलिसकर्मियों को बचाने की कोशिश बताया।

सेना की प्रतिक्रिया और न्याय की मांग

भारतीय सेना ने इस घटना पर गंभीर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की मांग की है। पश्चिमी कमान के चीफ ऑफ स्टाफ, लेफ्टिनेंट जनरल मोहित वाधवा ने कहा कि दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों। उन्होंने जनता से शांति बनाए रखने की अपील की ताकि राष्ट्र-विरोधी तत्व इसका फायदा न उठा सकें।

पंजाब पुलिस का बचाव और एसआईटी गठन

पंजाब पुलिस के डीजीपी गौरव यादव ने कहा कि पुलिस सेना के प्रति सम्मान रखती है और यह घटना एक अवांछित विचलन है। उन्होंने बताया कि 12 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है और एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया गया है।हालांकि, कर्नल बाथ ने पंजाब पुलिस की जांच पर अविश्वास जताते हुए सीबीआई जांच की मांग की है।

सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

इस मामले ने राजनीतिक हलकों में भी तूफान खड़ा कर दिया है। कांग्रेस नेता कैप्टन अजय यादव ने पंजाब सरकार पर नशा माफिया और कानून-व्यवस्था की विफलता का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “जब एक सेना अधिकारी सुरक्षित नहीं है, तो आम आदमी कैसे सुरक्षित होगा?”

निष्कर्ष: न्याय की राह

कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाथ का मामला न केवल एक व्यक्ति के साथ हुए अन्याय की कहानी है, बल्कि यह पुलिस की मनमानी और कानून के शासन पर उठते सवालों को भी उजागर करता है। अब सभी की निगाहें हाईकोर्ट पर टिकी हैं कि वह न्याय सुनिश्चित करे। यह मामला एक बार फिर साबित करता है कि पुलिस सुधार और जवाबदेही तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।

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(यह ब्लॉग पोस्ट विभिन्न समाचार स्रोतों और आधिकारिक बयानों पर आधारित है।)

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